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Showing posts from 2018

फिर आना होगा तुमको!

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राधा-रानी देख रही हैं राह और राहजान को  बीते पहर नैन अलसाई  मोहन संग क्यूं प्रीत लगाई।। ।।। आस   जगी फिर आस मिटी   उर चिंतित हुए बिन सुजान को  बावरी सी घूम रही जोगन बन पंछी डाली-डाली।। ।।। पात-पात पर लिख रही यही आज नहीं तो कल  कल नहीं तो कलियुग में  फिर आना होगा तुमको।। ।।। हे! जग के पालन हार करने इस जग का उध्दार फिर से करने दुष्टों का संहार फिर से पाने राधा का प्यार ।।। कर रहा प्रतिक्षा यह संसार फिर आना होगा तुमको हे! जग के पालन हार हे! जग के पालन हार।।                                                                -©®K.K.Leelanath✍ https://khushithought.blogspot.com

बालिका दिवस।

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बेटियाँ! हैं इस संसार में बहुमूल्य खजाना सहेजना, सम्मान देना, प्यार देना। तुम इन्हें कभी ना गंवाना! फ़ुर्सत के दो पल निकालना और  ज़रा सोचना,  क्या किया है उसने कभी शिकवा या  कोई बहाना। निरन्तर से चली आ रही विधान को  है उसने माना, कभी धर्म, कभी संस्कृति मान कर है उसे निभाया।             https/khushithoughtblogspot.com

हिंदी दिवस 14 सितंबर

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शॉर्टकट!

आजकल तो शॉर्टकट बोलने का ज़माना है  मुँह में जो आ जाए बन जाता वही फ़साना है।                                कभी पी.एम. रात्रि को सुबह ए.एम. मैत्री से मिलने जाना है।। कभी पी.एम. मंत्री को सी.एम. मंत्री साहिबा को आंख दिखाना है।। कभी बी.एफ. तो कभी जी.एफ.। कभी बी.एफ.एफ. तो कभी जी.एफ.एफ. को ढूंढते-ढूंढते गूगल पे ही थक जाना है।। हास्यप्रद दशा देखो मानव की। कभी एफ.एम. रेडियो तो कभी एम.एफ. को उल्टा करके मेल-फिमेल बनाना है।। https://khushiThought.blogspot.com Fb.me/Khushikanduthought 

【घर से दूर मैं मजबूर】

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         बात उन दिनों की है जब मैं लखनऊ में  शास्त्रीय संगीत की छात्रा थी। घर से दूर इक अज़नबी शहर में रहते हुए हर छोटे-बड़े  अनुभव को आत्मसात करने की कोशिश कर रही थी। ऐसे भीड़ -भाड़ वाले शहरो में हर रोज़ कुछ ना कुछ  घटनाएं अवश्य होती रहती हैं। इन सब घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए, मैं खुद को उस परिवेश में ढालने की कोशिश कर रही थी। यह मेरा शुरूआती दौर तो नही था, "यथा- तथा लगभग दो वर्ष बीत चुके थे" फिर भी मैं यहां के अपरिचित लोगों से भयभीत रहती थी।  जैसा कि हर लड़की के साथ होता है। शुरुआत के दो वर्ष मैं अपने ही कॉलेज की शिक्षिका के साथ रही। जो की मेरी शिक्षिका कम गुरु माँ और बड़ी बहन ज्यादा थीं। हां वो थोड़ी क्रोधित स्वाभाव की थीं पर साथ में साफ दिल और स्पष्टवादी महिला भी थीं। इस प्रकार उनके साथ रहते हुए लोगों से अच्छी खासी पहचान बनना स्वाभाविक है।               तत्पश्चात मुझे किसी कारणवश उस कॉलेज से अपनी पढ़ाई और उनका साथ छोड़ना पड़ा किन्तु मैंने संगीत सीखना जारी रखा। उन दिनों मेरी क्लास सुबह हुआ करती थी। जोकि एक घंटे की क्लास और उसमें भी मैं दस मिनट लेट पहुंचती थी। हर रोज़ क

विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून पर विशेष।

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                              प्रकृति और नारी। 'प्रकृति   और नारी' बड़ी निराली है, तेरी ज़िदंगानी; चंद लफ्ज़ो में बयां नहीं कर सकती, मैं तेरी कहानी।।               प्रकृति और नारी के गुणों को चंद शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता। दोनों ही स्वयं में अथाह सागर की भांति हैं। क्योंकि दोनों का ही श्रेत्र सीमा अति व्यापक है, जिस प्रकार प्रकृति सम्पूर्ण धरती को स्वयं में समेटे हुए, उसे सहेजती है ठीक उसी प्रकार से एक नारी भी अपने सम्पूर्ण परिवार को समर्पित उसका पालन-पोषण करती है।        यदि प्रकृति और नारी की तुलना की जाए तो दोनों ही समान हैं, जिस प्रकार नारी "चंचलता और गम्भीरता" दोनों ही गुणों को आत्मसात करते हुए समय-समय पर अनेक रूप धारण करती है, 'उसे अनेक रिश्तों की संज्ञा दी जाती है।' उसी प्रकार प्रकृति में भी "चंचलता और गम्भीरता" जैसे गुण पाए जाते हैं। जैसे- तेज़ चलती हुई हवा चंचलता का परिचायक है, और रूका हुआ शांत जल अपनी गम्भीरता का परिचय देता है।  उपर्युक्त गुण इनके विशिष्ट गुणों में से एक है।  किन्तु प्रकृति और नारी को सिर्फ़ इन्हीं गुणों तक स

मातृ दिवस पर विशेष चर्चा।

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" मांं"  वह शब्द है जिसमें अर्थ ही अर्थ है; जिसकी तुलना किसी और से करना व्यर्थ है। इस रिश्ते का कोई मोल नही है; यह रिश्ता सबसे अनमोल है। यदि हम मां के बारे में चर्चा करें तो शायद शब्द कम पड़ जाएंगे।  यदि हम ज़िक्र करें इक मां और बच्चे के रिश्ते के बारे में तो शायद ही उसे शब्दों में पिरोया जा सकता है। क्योंकि मां शब्द अपने आप में बहुत ही विस्तृत है। यदि हम बात करें "क्या होती है इक मां की भूमिका हमारे जीवन में ?" तो शायद ही उसके स्वरूप को भली-भांति व्यक्त किया जा सकता है। मां ही हमारी जननी है, मां हमारा पालन-पोषण करती है, मां ही हमारे खुशियों का ख़्याल रखती है, और हर वक्त व हर पल मां ही हमारे साथ खड़ी होती है। इसीलिए मां का होना बेहद ज़रूरी है, इसलिए मां का सम्मान करें और अपने ख़्याल से पहले रखें मां का ख़्याल, क्योंकि बिना मां के नहीं बनती किसी की ज़िंदगी मिसाल। मां का रिश्ता होता ही बहुत खास है, बहुत ही प्यारा-निराला और सर्वोपरि सबसे ऊपर होता है मां का रिश्ता। मां का रिश्ता भगवान् से भी ऊपर होता है, क्योंकि हर वक्त, हर पल, हर जगह भगवान् नही पहुं

पृथ्वी की पुकार।

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 पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष... मैं जननी हूं तो विनाशनी भी, मै दाता हूं तो हरणी भी। मेरा सदुपयोग करोगे तो फलोगे-फूलोगे, बन विलासी यदि दुरुपयोग करोगे तो मिट्टी में मिल जाओगे। मैं तेरी "मां" तो नहीं, पर "मां" जैसी हूं। फर्क बस इतना है- उसने तुझे जन्म दिया है, और मैंने तुझे पाला है। रख मेरी सरज़मी पर कदम, तूने चलना सीखा है, आज होकर बड़ा तूने पूरे जहां को रौंद डाला है। मां जैसी हूं तेरी, क्षमा करना स्वाभाविक है। देता है समय तुझे इक और अवसर, तू अपनी गलती सुधार ले। कर धरती को पुनः हरा-भरा, इसमें तेरी भलाई है। बस यही तेरे आगे पड़ी सच्चाई है। सींच दो इस धरती को, पहना नया वसन, हो जाऊं मैं भी खुश, और हो तेरा भरन। अपने लिए ना सही,  आने वाली पीढ़ी को नई सौगात दे। अपने कोशिशों से कर उनकी ज़िंदगी आबाद दे। ये मेरा मशवरा नही; तेरे लिए, ये तो फ़रमान है। कर मेरी ख़्वाहिश पूरी, यही मेरी अरमान है।                            https://khushithought.blogspot.com

जीवन रेखा कितनी छोटी?

जीवन रेखा कितनी छोटी? हाथ की लकीरों से भी बौनी। ज़र्द पड़ी जा रही दिन-ब-दिन  चेहरा भी मुरझा रहा है। किस नीम हकीम की दवा से  चेहरा खिले फिर गुलाबों के जैसे। धीरे-धीरे कुछ सिकन सी उभर रही थी उसके चेहरे पे। अब ख़ौफ भी मुझे सता रहा था  ग़र हार गई मैं इसकी बाज़ी । क्या होगा औरों का, जो चढ़ी नही  भेंट उन दरिंदों के । आखिर हुआ वही जिसका डर था  टूट गई सांसो की डोरी । जीवन रेखा कितनी छोटी? हाथ की लकीरों से भी बौनी ।     khushithought.blogspot.in

बिदाई बंसत की....

बंसत ॠतु है घर जाने वाली  अब गर्मी है आने वाली। खोल के रख लो खिड़की-दरवाजे भर के रख लो हवा को सारे। मौसम का कोई ईमान नही जैसा भी हो, थोड़ा सा बेईमान सही। बदलेगा तो हम भी बदल जाएंगे  हम भी इसके साथ कदम मिलाएंगे। कमर कस लो सारे वासी हारना नही है मौसम की बाज़ी। बिमारी ना दस्तक दे इसलिए करना है ज़रा सफाई। जन-जन को है जागरूक करना बंसत ॠतु है घर जाने वाली। अब गर्मी है आने वाली  इसलिए कर लो अभी से तैयारी । khushithought.blogspot.in

सबक.....✏

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इक पंछी उड़ा अज़नबी शहर की ओर : ले ताना-बाना बुनने को,अपने सपनो की डोर।  ट्रेन अपने निर्धारित स्टेशन पे रुकी और सीटी बजते ही मैं नींद से जागा आँख मलते हुए बाहर देखा तो मेरा स्टेशन आ चुका था। मैं उतरने के लिए अपना सामान समेटने लगा और ट्रेन से उतरकर कैंटीन की तरफ़ बढ़ा, गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थी इस कारण आने जाने वालों की भीड़ भी जबर्दस्त थी। गर्मी और भीड़ देखकर मैं ऊफ करना चाहा। पर करता भी क्या मैं, ये पेट जो भूख का मारा था। मन ही मन सोचने लगा जो सुकून अपने घर और गांव में है वो कहीं और नही है।  मैं काउन्टर पर पहुंच कर मेन्यू कार्ड देखते हुये छोला-चावल का आर्डर देकर फिर से अपने बेंच पर आकर बैठ जाता हूं। और अपने सपनों में खो जाता हूं, मैं  नये शहर में आकर काफ़ी रोमांचित था पर कहीं-न-कहीं मेरे मन में इक भय भी था कि इस नये शहर में स्वयं को स्थापित कर पाऊंगा भी या नही। फिर भी मैं स्वयं का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं इसलिए स्वयं को तसल्ली देते हुए मन ही मन दृढ़ निश्चय करने लगा और घर की स्थिती को बदलने के बारे में सोचने लगा। पर वक्त के बारे में कौन जानता है। तभी सामने से आवाज़ आती है भ

{विश्व रंगमंच दिवस।}

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   ( विश्व रंगमंच दिवस २७ मार्च ) इस धरा पे रची बसी इक और नयी मिसाल । किरदारों से अपने है रचता इक नया इतिहास । गली नुक्कड़, नाटक आदि, हैं इसके अनेक नाम। कभी सांवली कभी सवेरा बनकर,  है करता जग का उत्थान। कभी राम कभी रहीम बनकर, कलाकार  है देता इसको इक नया मुकाम। हर रोज़ गढ़ी जाती हैं इस घर में इक नयी कहानी। भव्यता नही सूक्ष्मता से, अश्लीलता नही शालीनता से ये ज़िक्र नही है फिल्मों का, ये है हमारे रंगमंच की पहचान।

रुकना मना है...

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यहाँ रुकना मना है ; हालातों से लड़ना नही। संघर्ष करते जाना ; कभी ठहरना नही।  चलते ही जाओ ; रास्ते ख़ुद करीब आएंगे। फिर ग़म नही ; तेरे होंठ मुस्कुरायेंगे। आज वक्त को तेरे; हुनर की तलाश है । इसीलिए तू अभी से ; इसे तरास ले। नामुमक़िन नही बस ; ज़रा सा मुश्क़िल है। जी हाँ ये वही शुरुआत है; फिर ख़ुद कहोगे! आगे का रास्ता तो  बड़ा ही साफ है। बस सब्र से काम लेना; और ज़रा सा ध्यान देना। कि कहीं कोई ; कर ना दे गुस्ताख़ी  और बेईमानी से छीन ले बाज़ी। भला क्या कसूर उसका; वो भी तो वक्त का मारा है। हो सके तो तुम ; बनना उसका भी सहारा । सेवा पोशी करके तुम; तुच्छ नही महान बनोगे । जन-जीवन के लिए भगवान बनोगे। कमज़ोर का सहारा बनना; शक्तिशाली का नही। उसकी दुआ से तेरा  हाथ ना होगा खाली कभी। बस ऐसे ही चलते जाना; कभी रुकना नही । संघर्ष करते जाना ; कभी ठहरना नही ।   https://khushithought.blogspot.com

विश्व कविता दिवस पर विशेष

काव्य के बिना संसार की कल्पना करना मात्र निरर्थक ही नहीं, नीरस भी है। ब्रह्मा दारा सृष्टि की रचना किये लाखों और करोड़ों बर्ष पश्चात भी काव्य और कला की लोकप्रियता जैसी की तैसी है। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की निमार्ण और पृथ्वी पर मनुष्यों की उत्पत्ति के बाद भी वह अपने इस कार्य से असंतुष्ट रहते हैं। तत्पश्चात माँ सरस्वती ब्रह्म देव द्वारा आज्ञा पाकर काव्य, कला और संगीत का निर्माण करती हैं। जिस कारण इनको संगीत की देवी भी कहा गया। हालाँकि इस आधुनिक युग में मनोरंजन के कई और साधन भी मौजूद हैं। आज सबसे बड़ा मनोरंजन का साधन चलचित्र  (फिल्में) हैं। किन्तु इतिहास में काव्य, कविताएँ और कवियों की अपना अलग स्थान रहा है। प्रथम विश्व कवि महर्षि वाल्मीकि ने "रामायण" जैसे महाकाव्य की रचना कर इस संसार को प्रेम, त्याग, क्षमा, बलिदान, और एकता का संदेश देते हुए अपनी इस उत्कृष्ट काव्य-रचना को सदा - सदा के लिए अजर अमर किया है। इसी कड़ी में "महाभारत" भी काव्य की दुनिया में अलग इतिहास रचता है। अगर बात करें इस आधुनिक युगीन काव्य की तो इस युग में भी काव्यों का महत्व कम नही है। युगों युगान्तर

Kahat Kabir Suno Bhai Sadho

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