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Showing posts from December, 2020

【दोहा संग्रह】

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  ।।दोहा।। हे प्रथम पूज्य विघ्नेश, बाधा हरते आप। आपके शुभागमन से, पूर्ण होते काज।।१।। ।।। हरी दर्शन की लालसा, भोर संध्या रैन। आओगे कब हे हरी, भीगत मोरे नैन।।२।। ।।। कैसी यह लड़ाई मनु, कैसा है अभिमान। चार दिन की है यात्रा, अंत में है श्मशान।।३।। ।।। छड दे प्यारे पाप कर्म, जप ले उसका नाम। चल उस डगर पे पगले, जो जाता प्रभु धाम।।४।। ।।। विचरत हैं सभी बाहर, जैसे कोई सांड। झांके न केहू अंदर, जहां सोई ब्रह्मांड।।५।। ।।। प्रेम पथ पर बाधा अति, है जानत संसार। जो किया सो उबर गया, बिनु पढ़े वेद सार।।६।। ।।। अरे मूर्ख मानव दैत्य , आचरण ले सुधार। पीटेगा तू एक दिन, जन करेगा प्रहार।।७।। ।।। अंतर्मन के सागर में, खोजत जैसे 'नीर'। 'मैं' की भावना तज कर, समझे जैसे पीर।।८।। ।।। लिखूं दोहा-चौपाई, अरू कुण्डलिया-छंद। बस यही भाए हमको, इ कबहु ना हो बंद।।९।। ।।। वस्त्र सुवर्ण से मन मोहे, जिसकी आयु है कम। यदि सद्गुण से हिय छुए, तो चक्षु ना हो नम।।१०।। ।।। संकट मोचन रामभक्त, बाला तेरो नाम। हे हनुमंत दया करो, आपको नित प्रनाम।।११।। ।।। सघन अंधेरा छाया, आओ मेरे श्याम। भीति लागै अति मोहे, पूरन ना हो काम।।१

चौराहे की चाय....

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      मैं हर रोज सुबह सैर करने निकलती तो चौराहे की तरफ़ ज़रूर देखती थी। हलांकि मैं रुकती नही थी, पर वहां खड़े हुए कुछ महान विभूतियों के दर्शन जरूर करती थी; और ध्यान लगा के सुनती थी, कि आज कौन से मुद्दे पर चर्चा चल रही है।  ये हमारे मुहल्ले के कुछ ऐसे लोग थे जिनकी गाथा अनंत थी। सुबह की ये चाय-चर्चा तो देखते बनती थी। और तो और इन महान आत्मओं की सुबह का शौच भले ही छूट जाए पर इनकी चाय और चर्चा ना छूटने पाए। भले ही ये लोग उन बातों और आदर्शों को व्यवहार मे लाये या ना लाये लेकिन उन आदर्शों का नाम गिनाए बिना इनकी चाय-चर्चा मानो अधूरी थी।  "भई सवाल था कि, चर्चा में कोई एक दूसरे से पीछे ना रह जाए।"  कोई भी एक दूसरे से कम नही था।  कभी देश की बदहाली पर चर्चा चलती तो कभी राजनीतिक दल के किस्से होते थे। लेकिन हर रोज की तरह उस दिन चाय चर्चा कुछ ज्यादा खास थी। भई! उस दिन ना चाय थी और ना ही चाय वाला। किसी कारणवश उस दिन चाय वाला अपनी दुकान लगाने में असर्मथ था। भगवान् जाने क्या मजबूरी आन पड़ी थी। वो बेचारा अकेला ठहरा घर -दुकान चलाने वाला, साथ में बीबी, दो बच्चे और बूढ़ी मां।  भला अच्छा खासा पढ़ा लि

संगीत और साहित्य....

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   [संगीत और साहित्य] संगीत वीणा की तान, साहित्य जग का मान  एक प्रेम का घोतक, दूसरा सत्य की खोज। संगीत सुरों की वाणी, साहित्य जग का दर्पण एक करे पुलकित मन, दूसरा दिखाए मार्ग। संगीत एक साधना, साहित्य शुध्द भावना एक सिखाए भक्ति, दूसरा ले जाए उस ओर। संगीत ही सरस्वती, साहित्य भी वेद-पुराण एक करो धारण, दूसरा स्वयं चलके आए पास। संगीत संवारे सृष्टि, साहित्य करे जग का उत्थान दोनों ही एक दूसरे के पूरक, दोनों ही आधार। जैसे अर्धनारीश्वर, एक पौरुष दूसरा प्रकृति दोनों का सम्मलित रूप बने, शिव और शक्ति। -©®Khushi Kandu Leelanath

हर मन कृष्णा गीत के गुण गाए....

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  का लिखुंगी कान्हा कोई बात नहीं तेरे जाने का तुझे हर्ष है, हमें  तो आघात सही। *** अब कैसी दिन है और कैसी रात,  किसे खबर है यह और किसको पता  यहां सारे बात। *** अब तो बस चारों ओर तेरी प्यास अब तो ना किसी को कोई सुध,अब यमुना भी उदास। *** गौ ना घास खाए वो भी निरंतर अश्रु  बहाए, विलाप कर रही लता-पताए नदियां-झरने भी झड़ी-सूखी जाए  *** व्याकुल हैं तेरे बिन, सारे वासी सबको है तेरी  वही याद सताए देख रहे तेरी  राह, हर मन कृष्णा गीत के गुण गाए। *** -©® Khushi Kandu Leelanath

इक आज़ाद नज़्म....

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  मुकम्मल इश्क़ ना मिले तो ख़ुदा से मिलना;  इस वास्ते दुनिया जुदा होके चलना। मिल जाएगा मुकम्मल इश्क़-ओ-ख़ुदा दोनों ही; बस अपनों से थोड़ा विदा लेके चलना।   जिस दुनिया में जी रहे हो, वो तुम्हारी दुनिया नहीं; असल में हक़ीक़त क्या है, उसका तुम्हें पता ही नहीं। जिस राह पर चल रहे हो, वो तुम्हारा रस्ता ही नहीं; तुम बेज़ार हो ज़िंदगी से, ये जीवन इतना सस्ता भी नहीं। जो तुम देख रहे हो इस जहां में, सबकुछ वैसा नहीं; कई असरार छिपे हैं, इसका रंग भी गिरगिट जैसा ही। यहां हर कोई नुमाइश के नुमाइंदे हैं; पैदाइश से कोई ख़ुदा के बन्दे नहीं। ज़मीर-ए-पाक बिना यहां पर जीना बेकार है; ज़ुबाँ-ए-इश्क़ यहां का सबसे बड़ा हथियार है। ज़िंदगी मिली है, तो ख़ुदा के लिए भी वक़्त निकाल; तुम भी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा हो, अब दुनिया के लिए बन मिसाल। (*मुकम्मल:- पूर्ण/सफल, *इश्क़-ओ-ख़ुदा:-प्रेम और भगवान, *बेज़ार :- उदास, *असरार:- रहस्य, *नुमाइश:- प्रर्दशन, *नुमाइंदे:- प्रतिनिधि, *ज़मीर-ए-पाक:- पवित्र आत्मा, *ज़ुबाँ-ए-इश्क़:- प्रेम की भाषा, *ख़ल्क़-ए-ख़ुदा:- ईश्वर की रचना।)     

मेरे पापा...

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  मेरे पापा सबसे अच्छे; ज़मी नहीं तारों के जैसे  एक दफ़ा नही सौ दफ़ा कहेंगे ऐसे! मेरे पापा सबसे अच्छे।।। फूलों को जैसे नीर सींचते वैसे ही पापा हमें सींचते एक दफ़ा नही सौ दफ़ा कहेंगे ऐसे! मेरे पापा सबसे अच्छे।।। ओस की बूंद से, जैसे घास सने वैसे ही पापा के प्यार से हम बढ़े एक दफ़ा नही सौ दफ़ा कहेंगे ऐसे! मेरे पापा सबसे अच्छे।।। जैसे बिना सूर्य के ना दिन निकलते वैसे ही बिना पापा के कहां संवरते एक दफ़ा नही सौ दफ़ा कहेंगे ऐसे! मेरे पापा सबसे अच्छे।।। जो हमारी मुस्कान लिए  सारे जख्म झेलते भला उनकी जज़्बात से कैसे खेलते मेरे पापा सबसे अच्छे  एक दफ़ा नही सौ दफ़ा कहेंगे ऐसे।