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【On the spot!】

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दो शब्द....✍ यह कहानी नहीं कड़वा अनुभव है, मेरे जीवन का जिसे मैंने संवारा है।  यह कल्पना नहीं हकीकत है। जिसे मैंने शब्दों में पिरोकर पन्नों पर उतारा है।  यूं तो सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जिसमें कई व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य बना लेते हैं और आगे निकल जाते हैं, किंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन में आने वाली चुनौतियों को विकट समस्या मानकर उसी में उलझे रहते हैं और जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते।  वैसे मैं बात कर रही हूं मेरे साथ घटी एक घटना के बारे में जिससे मैं आहात तो नहीं कहूंगी, 'लेकिन परेशान ज़रूर हो गई थी।'  साथ ही बैचेन भी। कि आख़िर मैंने ग़लती की कहां? यही सवाल बार-बार मेरे मन को कूरेद रहा था।        दरअसल हम सभी रंगमंच के कलाकार अपनी भावी नाटक का पूर्वाभ्यास कर रहे थे, और हुआ ये कि पूर्वाभ्यास के दौरान पता चला कि हमारे कुछ साथी कलाकार नहीं आएंगे। तभी हमारे डायरेक्टर (सर) ने आदेश दिया कि, फला वयक्ति का डायलॉग मुझे पढ़ना है। मैंने स्क्रिप्ट उठाया और पढ़ना शुरू किया। ज्यों का त्यों मैंने उस डायलॉग को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ पढ़ा