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नाटक-: एक सवप्न प्लास्टिक मुक्त भारत का......
पात्र परिचय 1- रामाधीन मुंशी 2- मुंशी की पत्नी 3- वकील 4- वकील की पत्नी 5- चेतू (सब्ज़ी वाला) 6- एक अन्य ग्राहक (प्रथम दृश्य / रामाधीन मुंशी जी के घर का दृश्य) (रामाधीन मुंशी जी प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान की आराधना में व्यस्त अपने इष्ट का गुणगान करते हुए...) हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे। हरे रामा हरे रामा, रामा रामा हरे हरे।। भजन समाप्त करते हुए प्रभु की चरनो में नतमस्तक होते हैं। पूजा-पाठ खत्म करने के बाद बाहर बरामदे में लगी कुर्सी पर आकर बैठ जाते हैं और वहां रखी अख़बार उठाकर पढ़ने लगते हैं। थोड़ी देर बाद उनके पड़ोसी मित्र जो पेशे से वकील हैं, टहलते हुए आते हैंं। मुंशी जी- आइए-आइए बैठिए, आज इधर कैसे आना हुआ? वकील - (बैठते हुए बोलते हैं) हां! काफी दिनों से आप दिखाई नहीं दिए और इधर से टहलते हुए जा रहा था तो सोचा आप से भी मिलता चलूं। मुंशी जी - हां आजकल जोड़ों का दर्द कुछ अधिक ही बढ़ गया है, सो नहीं जा पाता हूं सुबह टहलने... वकील - हां आपकी बात भी सही है, अब क्या किया जाए जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे तमाम बिमारियां घेरनी शुरू हो
◆शायरी संग्रह◆
-------------------------------------------------- एक ना एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा, इक बार "फर्दा" फिर मुस्कुराएगा। मैं रहूं या ना रहूं, ये जहान; मुझे मेरी नज़्म में हर वक़्त पाएगा। (फर्दा:-आने वाला कल, नज़्म:-कविता) -------------------------------------------------------- अमावस की रात, फिर भी तारों की बारात है। वो जुगनू सी धूमिल, फिर भी मेरी हयात है। (हयात:- ज़िन्दगी) --------------------------------------------------- वो भी क्या "दहर" था, जब हर जगह तेरा ही कहर था। तेरे ही चर्चें हुआ करते थे हर गली में जब तुझपर फ़िदा पूरा शहर था। (दहर:- दौर, समय) --------------------------------------------------- मैं उकेरती शब्द बैठ कर तन्हाई में तुम हो की पढ़ते ही नहीं रात की गहराई में। ...... मैं ढूंढती तुम्हें इतनी शिद्दतों से तुम हो की मिले ही नहीं इतनी मुद्दतों से। ------------------------------------------------------- कौन कहता हैं कि.... हम इश्क़ में बर्बाद हो गए। हम तो आशिक़ी मे बन" शायर" इस जहां में आबाद हो गए
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