पृथ्वी की पुकार।
पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष... मैं जननी हूं तो विनाशनी भी, मै दाता हूं तो हरणी भी। मेरा सदुपयोग करोगे तो फलोगे-फूलोगे, बन विलासी यदि दुरुपयोग करोगे तो मिट्टी में मिल जाओगे। मैं तेरी "मां" तो नहीं, पर "मां" जैसी हूं। फर्क बस इतना है- उसने तुझे जन्म दिया है, और मैंने तुझे पाला है। रख मेरी सरज़मी पर कदम, तूने चलना सीखा है, आज होकर बड़ा तूने पूरे जहां को रौंद डाला है। मां जैसी हूं तेरी, क्षमा करना स्वाभाविक है। देता है समय तुझे इक और अवसर, तू अपनी गलती सुधार ले। कर धरती को पुनः हरा-भरा, इसमें तेरी भलाई है। बस यही तेरे आगे पड़ी सच्चाई है। सींच दो इस धरती को, पहना नया वसन, हो जाऊं मैं भी खुश, और हो तेरा भरन। अपने लिए ना सही, आने वाली पीढ़ी को नई सौगात दे। अपने कोशिशों से कर उनकी ज़िंदगी आबाद दे। ये मेरा मशवरा नही; तेरे लिए, ये तो फ़रमान है। कर मेरी ख़्वाहिश पूरी, यही मेरी अरमान है। https://khushithought.blogspot.com