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Showing posts from April, 2018

पृथ्वी की पुकार।

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 पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष... मैं जननी हूं तो विनाशनी भी, मै दाता हूं तो हरणी भी। मेरा सदुपयोग करोगे तो फलोगे-फूलोगे, बन विलासी यदि दुरुपयोग करोगे तो मिट्टी में मिल जाओगे। मैं तेरी "मां" तो नहीं, पर "मां" जैसी हूं। फर्क बस इतना है- उसने तुझे जन्म दिया है, और मैंने तुझे पाला है। रख मेरी सरज़मी पर कदम, तूने चलना सीखा है, आज होकर बड़ा तूने पूरे जहां को रौंद डाला है। मां जैसी हूं तेरी, क्षमा करना स्वाभाविक है। देता है समय तुझे इक और अवसर, तू अपनी गलती सुधार ले। कर धरती को पुनः हरा-भरा, इसमें तेरी भलाई है। बस यही तेरे आगे पड़ी सच्चाई है। सींच दो इस धरती को, पहना नया वसन, हो जाऊं मैं भी खुश, और हो तेरा भरन। अपने लिए ना सही,  आने वाली पीढ़ी को नई सौगात दे। अपने कोशिशों से कर उनकी ज़िंदगी आबाद दे। ये मेरा मशवरा नही; तेरे लिए, ये तो फ़रमान है। कर मेरी ख़्वाहिश पूरी, यही मेरी अरमान है।                            https://khushithought.blogspot.com

जीवन रेखा कितनी छोटी?

जीवन रेखा कितनी छोटी? हाथ की लकीरों से भी बौनी। ज़र्द पड़ी जा रही दिन-ब-दिन  चेहरा भी मुरझा रहा है। किस नीम हकीम की दवा से  चेहरा खिले फिर गुलाबों के जैसे। धीरे-धीरे कुछ सिकन सी उभर रही थी उसके चेहरे पे। अब ख़ौफ भी मुझे सता रहा था  ग़र हार गई मैं इसकी बाज़ी । क्या होगा औरों का, जो चढ़ी नही  भेंट उन दरिंदों के । आखिर हुआ वही जिसका डर था  टूट गई सांसो की डोरी । जीवन रेखा कितनी छोटी? हाथ की लकीरों से भी बौनी ।     khushithought.blogspot.in

बिदाई बंसत की....

बंसत ॠतु है घर जाने वाली  अब गर्मी है आने वाली। खोल के रख लो खिड़की-दरवाजे भर के रख लो हवा को सारे। मौसम का कोई ईमान नही जैसा भी हो, थोड़ा सा बेईमान सही। बदलेगा तो हम भी बदल जाएंगे  हम भी इसके साथ कदम मिलाएंगे। कमर कस लो सारे वासी हारना नही है मौसम की बाज़ी। बिमारी ना दस्तक दे इसलिए करना है ज़रा सफाई। जन-जन को है जागरूक करना बंसत ॠतु है घर जाने वाली। अब गर्मी है आने वाली  इसलिए कर लो अभी से तैयारी । khushithought.blogspot.in