जीवन रेखा कितनी छोटी?

जीवन रेखा कितनी छोटी?
हाथ की लकीरों से भी बौनी।

ज़र्द पड़ी जा रही दिन-ब-दिन 
चेहरा भी मुरझा रहा है।

किस नीम हकीम की दवा से 
चेहरा खिले फिर गुलाबों के जैसे।

धीरे-धीरे कुछ सिकन सी उभर
रही थी उसके चेहरे पे।

अब ख़ौफ भी मुझे सता रहा था 
ग़र हार गई मैं इसकी बाज़ी ।

क्या होगा औरों का, जो चढ़ी नही 
भेंट उन दरिंदों के ।

आखिर हुआ वही जिसका डर था 
टूट गई सांसो की डोरी ।

जीवन रेखा कितनी छोटी?
हाथ की लकीरों से भी बौनी ।


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