मातृ दिवस पर विशेष चर्चा।


"मांं" वह शब्द है जिसमें अर्थ ही अर्थ है;
जिसकी तुलना किसी और से करना व्यर्थ है।
इस रिश्ते का कोई मोल नही है;
यह रिश्ता सबसे अनमोल है।

यदि हम मां के बारे में चर्चा करें तो शायद शब्द कम पड़ जाएंगे। 
यदि हम ज़िक्र करें इक मां और बच्चे के रिश्ते के बारे में तो शायद ही उसे शब्दों में पिरोया जा सकता है। क्योंकि मां शब्द अपने आप में बहुत ही विस्तृत है।
यदि हम बात करें "क्या होती है इक मां की भूमिका हमारे जीवन में ?" तो शायद ही उसके स्वरूप को भली-भांति व्यक्त किया जा सकता है।

मां ही हमारी जननी है, मां हमारा पालन-पोषण करती है, मां ही हमारे खुशियों का ख़्याल रखती है, और हर वक्त व हर पल मां ही हमारे साथ खड़ी होती है। इसीलिए मां का होना बेहद ज़रूरी है, इसलिए मां का सम्मान करें और अपने ख़्याल से पहले रखें मां का ख़्याल, क्योंकि बिना मां के नहीं बनती किसी की ज़िंदगी मिसाल।
मां का रिश्ता होता ही बहुत खास है, बहुत ही प्यारा-निराला और सर्वोपरि सबसे ऊपर होता है मां का रिश्ता।
मां का रिश्ता भगवान् से भी ऊपर होता है, क्योंकि हर वक्त, हर पल, हर जगह भगवान् नही पहुंच सकता  इसीलिये उसने मां को बनाया। इसी कारण मां को भगवान् का दूसरा नाम कहा जाता है। साथ ही खास वजह जब हम इस दुनिया में कदम रखते हैं और अपनी आंखें खोलते हैं तो खुद को हम अपनी मां की गोद में पाते हैं और मां ही वो पहली शख्स होती है जो हमपर अपना वात्सल्य व प्रेम लुटाती है, और सबसे पहला जो रिश्ता जुड़ता है वो मां से जुड़ता है इसीलिए मां हमारे ज़िदंगी का पहला प्यार व पहला रिश्ता होती है।
अनेक विद्वानों ने मां को अनेक रूपों में परिभाषित किया है। किसी विद्वान ने क्या खूब लिखा है--
"परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला तथा मां उसकी पहली अध्यापिका होती है"
और हर मायने में यह बात सत्य है। किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में और आचरण के निर्माण में मां की अहम भूमिका होती है। बच्चा सबसे पहले मां से परिचित होता है, फिर परिवार से फिर बाद में पूरें समाज से। इसीलिये हर मां को अपने बच्चे की जीवन में सर्वप्रथम व्यक्ति का स्थान प्राप्त है।

                       देख तबस्सुम बच्चों की 
                   आती है उसके चेहरे पर हंसी,
                          मां तो खुदा होती है, 
              बिन बताए पढ़ लेती है उदासी सभी।      
        

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