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Showing posts from 2019

नाटक-: एक सवप्न प्लास्टिक मुक्त भारत का......

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पात्र परिचय 1- रामाधीन मुंशी 2- मुंशी की पत्नी 3- वकील 4- वकील की पत्नी 5- चेतू (सब्ज़ी वाला) 6- एक अन्य ग्राहक (प्रथम दृश्य / रामाधीन मुंशी जी के घर का दृश्य) (रामाधीन मुंशी जी प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान की आराधना में व्यस्त अपने इष्ट का गुणगान करते हुए...) हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा  हरे हरे। हरे रामा हरे रामा, रामा रामा हरे हरे।। भजन समाप्त करते हुए प्रभु की चरनो में नतमस्तक होते हैं। पूजा-पाठ खत्म करने के बाद बाहर बरामदे में लगी कुर्सी पर आकर बैठ जाते हैं और वहां रखी अख़बार उठाकर पढ़ने लगते हैं। थोड़ी देर बाद उनके पड़ोसी मित्र जो पेशे से वकील हैं, टहलते हुए आते हैंं।  मुंशी जी-   आइए-आइए बैठिए, आज इधर कैसे आना हुआ? वकील - (बैठते हुए बोलते हैं) हां! काफी दिनों से आप दिखाई नहीं दिए और इधर से टहलते हुए जा रहा था तो सोचा आप से भी मिलता चलूं। मुंशी जी - हां आजकल जोड़ों का दर्द कुछ अधिक ही बढ़ गया है, सो नहीं जा पाता हूं सुबह टहलने... वकील - हां आपकी बात भी सही है, अब क्या किया जाए जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे तमाम बिमारियां घेरनी शुरू हो

【मंदिर-मस्जिद में फ़र्क दिखाए मुझे】

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बंटवारे से हम भी थोड़े प्रेरित हुए,  इसलिए हमारे शब्द भी इसी पर केन्द्रित हुए। कोई ज्ञानी हो तो बताए मुझे  मंदिर व मस्जिद में फ़र्क दिखाए मुझे। मैंने तो सुना था ईश्वर एक है किन्तु यहां आकर मैंने जाना! भगवान अनेक है।। उसका रंग अलग  एक ने चुना लाल रंग तो दूजे हरे रंग से शान बढ़ाते हैं। उसका रूप अलग एक के माथे पर मोर मुकुट तो दूजे को टोपी पहनाते हैं उसकी बनावट अलग  एक को निराकार तो दूजे को सकार ब्रह्म दिखाते हैं।। उसकी सजावट अलग एक को आभूषणों से तो दूजे को केवल चादर चढ़ाते हैं उसकी भाषा अलग एक को उर्दू तो दूजे को संस्कृत से दर्शाते हैं। उसकी परिभाषा अलग। हाय! परिभाषा में ना जाने लोग क्या-क्या बतलाते हैं।। बस इन्हीं आधारों पर कर दिया पृथक ईश्वर-अल्लाह को अब हर रोज़ मज़हब के नाम पर लड़वाते हैं। व्यथित हो रहा ये मन मेरा  आख़िर कब अंत होगा इस व्याग्रता का जिसको हम व्यर्थ में सहते जाते हैं।। काश! समझ पाता यह मानव प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं क्यूं बेवजह हम एक-दूजे का रक्त बहाते हैं। ना कोई स्थाई सदस्य है इस दुनिया का फिर भी हम चार-दिन की ज़ि

【कर्म ही पूजा है】

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कर्म ही पूजा है.... कर्म करो फल की चिंता दो छोड़,  मानव हो तो इस बंधन को दो तोड़। (प्रस्तुत कविता में एक तितली के माध्यम से मनुष्यों को निर्बाध कर्म करते रहने का संदेश दिया गया है।) दिन-प्रतिदिन फूलों से रस लाऊं अपना भोजन स्वयं पकाऊं। यहां कर्म-फल की विधा है सोई जिसका मर्म ना जाने हर कोई। पशु-पक्षी ना जाने यह सार फिर भी कर्म करे हजार। थकते हैं हम बेज़ुबान भी पर करते नहीं बयान कभी। भूख-प्यास हमें भी सताए पर इसका हाल कभी ना बताए। फिर भी मानव की क्या कथा सुनाए वो तो स्वयं के जीवन से ही पछताए। मानव ना जाने कहाँ व्यस्त है अपने जीवन से क्यों त्रस्त है। कर्म के महत्व को भलीभांति जानता है फिर भी ना जाने क्यूं कर्म से भागता है। हे प्रकृति! अब तुम ही बताओ भटके हुए मानव को राह दिखाओ। कैसे मानव की प्रेरणा स्रोत बनें उनके अंधियारे का ज्योत बनें। हमारे पास ना बोली और ना ही भाषा है हमारी तो बस मूक दर्शक की परिभाषा है।                                             -©® K.K.Leelanath http://khushithought.blogspot.com

【छपाक से....】

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छपाक से। (Chhapaak Se) A Poetry Dedicated To All Acid Victim. जल जैसी कुछ बूंदे जब गिरी मेरे  मुखमण्डल पर छपाक से। तब बड़ा ही सुखद एहसास हुआ किन्तु तुरंत मुझे कुछ आभास हुआ। अरे! यह तो शीतल जल नहीं यह कुछ ज्वलनशील सा है। ये क्या है? जिसका मुझे पता नही जिसका अनुभव भी बिल्कुल नया है। जल रही हो त्वचा जैसे; क्या सचमुच ऐसा है? जिसका भलीभांति मुझे पता नहीं। यदि ऐसा ही है, और यही सच है जो 'एक अनहोनी' और अमिट है। लेकिन मुझे कहां पता था कि  दुनिया में ऐसी भी कोई चीज़ है। जो खुद्दारों के लिए बड़ा ही अज़ीज़ है। जिनके प्रतिशोध का यह हथियार है जो हमारे जीवन में जबरदस्ती हिस्सेदार हैं। जिनके ज़हन में इनकार शब्द ही नहीं वो तो मात्र मनमानी के तलबगार हैं। जिन्हें आता नहीं जीने का सलीक़ा  समझते हैं खुद को दुनिया का ख़लीफ़ा। जो मात्र बीभत्स में आकर करते ये काम हैं मानो इनका जिना भी यहां हराम है। जिनके पास मन, मस्तिष्क, चेतना, सब विद्ममान हैंं। फिर भी निर्दयता से पूर्ण, बने ये अज्ञान हैं।                                            ©®-K.K. 'Leelanath'

【बाला हूं इस देश की!】

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बाला हूं इस देश की,  कुछ फ़र्ज मेरे भी नाम हैं। सीमा पर जाकर लड़ नहीं सकती, इसलिए मेरी दुआ हमेशा वीरों के साथ है। ।। जिन्होंने घर-आंगन को  छोड़ा है, और मां की ममता से भी मुंह मोड़ा है। जिन्होंने सरहद पर जाकर,  अपना दम तोड़ा है। ।। करता है देश की रखवाली, अपनों का दामन छोड़ा है। ज़िंदगी भी उनकी क्या खूब ज़िंदगी है, खुद के ख़्वाबों को छोड़कर  गैरों के सपनों को ओढ़ा है। ।। सोते हैं हम चैन से अपने घरों में, ये वीरों की ही पहरेदारी है जिसने जगते-जगते,  पूरी रात गुज़ारी है। ।। ग़र आज मुल्क आज़ाद है, और हर तरफ खुशहाली है। ये लहलहाती फसल, और चारों तरफ हरियाली है। ।। ये शहीदों  के ही कुर्बानी का फल है जो शाश्वत और अटल है। जो देश की सेवा में हर क्षण तत्पर और निश्छल हैं। ।। यह विरासत हमने,  शहीदों की ही बदौलत पाया है। जिन्होंने अपने प्राणों को दांव पर  लगाकर,  ये इतिहास बनाया है। ।। शत-शत नमन ऐसे शूरवीरों को,  जो भारत मां के लाल हैं। जो इस देश के प्रहरी,  जिनका  हृदय हिमालय की भांति विशाल है।                                    

【On the spot!】

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दो शब्द....✍ यह कहानी नहीं कड़वा अनुभव है, मेरे जीवन का जिसे मैंने संवारा है।  यह कल्पना नहीं हकीकत है। जिसे मैंने शब्दों में पिरोकर पन्नों पर उतारा है।  यूं तो सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जिसमें कई व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य बना लेते हैं और आगे निकल जाते हैं, किंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन में आने वाली चुनौतियों को विकट समस्या मानकर उसी में उलझे रहते हैं और जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते।  वैसे मैं बात कर रही हूं मेरे साथ घटी एक घटना के बारे में जिससे मैं आहात तो नहीं कहूंगी, 'लेकिन परेशान ज़रूर हो गई थी।'  साथ ही बैचेन भी। कि आख़िर मैंने ग़लती की कहां? यही सवाल बार-बार मेरे मन को कूरेद रहा था।        दरअसल हम सभी रंगमंच के कलाकार अपनी भावी नाटक का पूर्वाभ्यास कर रहे थे, और हुआ ये कि पूर्वाभ्यास के दौरान पता चला कि हमारे कुछ साथी कलाकार नहीं आएंगे। तभी हमारे डायरेक्टर (सर) ने आदेश दिया कि, फला वयक्ति का डायलॉग मुझे पढ़ना है। मैंने स्क्रिप्ट उठाया और पढ़ना शुरू किया। ज्यों का त्यों मैंने उस डायलॉग को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ पढ़ा

◆शायरी संग्रह◆

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-------------------------------------------------- एक ना एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा, इक बार "फर्दा" फिर मुस्कुराएगा। मैं रहूं या ना रहूं, ये जहान; मुझे मेरी नज़्म में हर वक़्त पाएगा। (फर्दा:-आने वाला कल, नज़्म:-कविता) -------------------------------------------------------- अमावस की रात, फिर भी तारों की बारात है। वो जुगनू सी धूमिल, फिर भी मेरी हयात है। (हयात:- ज़िन्दगी) --------------------------------------------------- वो भी क्या "दहर" था, जब हर जगह तेरा ही कहर था। तेरे ही चर्चें हुआ करते थे हर गली में जब तुझपर फ़िदा पूरा शहर था। (दहर:- दौर, समय) --------------------------------------------------- मैं उकेरती शब्द बैठ कर तन्हाई में तुम हो की पढ़ते ही नहीं रात की गहराई में। ...... मैं ढूंढती तुम्हें इतनी शिद्दतों से तुम हो की मिले ही नहीं इतनी मुद्दतों से। ------------------------------------------------------- कौन कहता हैं कि....  हम इश्क़ में बर्बाद हो गए।  हम तो आशिक़ी मे बन" शायर"  इस जहां में आबाद हो गए

【Some Important Quotes for Life】

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Amazing Quotes By Khushi Kandu Leelanath. if you can think negative then  why can't you think positive.  _________________________________ ● Don't work for fame, just work for learning.  You would never be disappointed. ___________________________________________ ● Do work slowly & silently It means move on like tortoise. ______________________________________ ● If you wanna share your problem. So explain on the paper, not to people. ________________________________ ● Don't think about roads, just walk  Don't think about future, just do. __________________________________________   ● Your choices decide your personality.  so always choose the good & great things. ________________________________________ ● Everybody ask to me how many friend of you. Me replied none. Because more people, more problem. __________________________________________ ● Respect is a most valuable things, For Anybo

जहाँन को आजमाया है, तब जाना है।

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जहाँँन को आजमाया है, तब जाना है। लोगों को परखा है तब पहचाना है। माता-पिता जैसा कोई अपना नहीं उनसे दूर होना, इससे बुरा कोई सपना नहीं। नि:स्वार्थ जो प्रेम करे, वह मां-बाप है स्वार्थ के लिए जो साथ दे वह पालतू सांप है। दुनिया में अब हर कोई, दिमाग़ चलाता है इंसान तो क्या अब जानवर भी भाव खाता है। लोगों की सोच तो क्या, फ़ितरत भी बदल गई मतलब खत्म हुआ तो चाहत भी चली गई। आजकल अपनों को तो दूर, भगवान को भी नहीं पूछते विपत्ति ना पड़े तो, उन्हें भी नहीं पूजते। https://khushithought.blogspot.com

【विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 28 जुलाई।】

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              संरक्षण करो प्रकृति का,               संवर्धन हो इस धरती का।                     हमारे चारों ओर घिरा हुआ 'आवरण' अर्थात पर्यावरण।        आज के समय में हम तकनीकी क्षेत्र मेंं इतना आगे निकल चुके हैं कि अपनी आवश्यकता से कहीं अधिक आविष्कार और तरह-तरह की मशीनों का निर्माण कर चुके हैं। किन्तु क्या आपने कभी ये सोचा कि ये हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है या नहीं? क्या हमारा जीवन इन्हींं मशीनों पर निर्भर करता? क्या विज्ञान और तकनीक ही अब हमारी प्राथमिकता है? यदि आपका जवाब हां है तो आप पूर्णता ग़लत हैं।  हां! विज्ञान के कारण हजारों आविष्कार सम्भव हो पाए हैं, विज्ञान ने हमारे दैनिक जीवन को सरल व सुखमय अवश्य बनाया है, किन्तु कभी-न-कभी धन-जन के हानि का कारण विज्ञान भी बना है, यदि विज्ञान वरदान है तो अभिशाप भी है; और पूर्णता इन्हींं मशीनों पर निर्भर रहना सरासर ग़लत भी है।          आख़िर कब तक हम कृत्रिम वस्तुओं का सहारा लेकर स्वयं को सुरक्षित रखेंगे। आज दिन-प्रतिदिन गर्मी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है और हम ए.सी. व रेफ्रिजरेटर का उपयोग कर, गर्मी कम करने का एकमात्र साधन स

[जल से है जीवन]

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   जल से है जीवन जल से है यापन जल ही है सबसे बड़ा साधन।।। यूं ही ना समझो  तुम जल को क्षुद्र जल की महिमा ना जाओ भूल।। है नस-नस में दौड़ती तभी दौड़ रहे हम सभी।। सम्भव ही नहीं बिन जल के  इस सृष्टि का निर्माण।। सम्भव ही नहीं बिन जल के  मानव का उध्दार।। सम्भव ही नहीं बिन जल के  जीवों में प्राण।। जल का मूल्य समझो मूल्यवान बनोगे।। आने वाली पीढ़ी के लिए वरदान बनोगे।। https://khushithought.blogspot.com

【मैं ऐसी नारी नहीं !】

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छोड़ दिया उसने तो टूट जाऊँ मैं ऐसी नारी नहीं।। पुनःडूब जाऊँ उसकी स्मृतियों में  आती ऐसी कारीगरी नहीं।। दुष्ट के साथ दुष्टता करूं मुझे ऐसी दुष्टता प्यारी नहीं।। पौरूष का जो दम्भ भरे, बुद्धि नहीं क्रोध से। प्रेम नहीं मोह से।। योग नहीं भोग से  काम और लोभ से।। उसने अपनी बुध्दिमत्ता को नहीं अपनी तुच्छता को दिखाया है। मैं क्यूँ डरूँ मैंने क्या गंवाया है।।  मेरा बस इतना दोष है कि मैं एक नारी, अभागिन, अबला, बेचारी हूं। ऐसा कहती दुनिया सारी है! किन्तु! यह मात्र एक भ्रम है सत्य नहीं असत्य है नारी ही शिव की शक्ति है ब्रह्माण्ड की भक्ति है।। नारी ही दुर्गा है नारी ही काली है नारी ही घर की निष्ठा है संसार की प्रतिष्ठा है।। अगर नारी सृजनकारी है, तो नारी ही  संहारकारी है।। जो अधर्मी, जो अत्याचारी है। जिनपर उनके ही पापों का बोझ भारी है। उनके लिए रौद्र रुप धारण कर बनती रूद्राणी है बनती रूद्राणी है.... /__________________________________\ https://khushithought.blogspot.com

【रूठ गई नींद आंखों से...】

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अच्छी नींद आ रही थी आज आंखों में, पर ना जाने क्यूँ लौट गई ख़ामोशी से।। शायद रूठकर चली गई यूं दबे पैरों से अच्छा! चलो चल के मनाया जाय।। ना जाने क्यूँ नाराज़ हो गई है मेरे आंखों से बहुत हुआ रूठना! अब उसे समझाया जाय।। पहुंच गए नज़दीक उसके, मकान पर  अब धैर्य के साथ दरवाज़ा खटखटाया जाए।। तनिक आहट सुनाई दी उसके आने की  आ गई! अब बातों का सिलसिला चलाया जाए।। वो कुछ बोलती कि! हमने ही सब कह सुनाया पर वो तो धैर्य की मूरत, चुपचाप सुनती रही।। खत्म हुआ मेरे मन का संशय, तब उसने फरमाया ये बड़ी बारीक-महीन बात है, क्या तुम्हें ज्ञात है।। मैं नींद हूँ, मैं बसती हूँ बड़े चैन से उन आंखों में जिस तन ने काम,क्रोध,लोभ को साधा हो  जिस मन में ना कोई बाधा हो जिन आंखों में तृप्त हर अभिलाषा हो द्रवित हो हृदय किन्तु जाग्रत आशा हो।। https://khushithought.blogspot.com

माही सुन....

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बात हमारी सुन, वो माहिया मेरे दिल की धुन। क्या कह रहा है ये दिल,  ज़रा हौले-हौले सुन। बादल के जैसा है ये गुस्सा मेरा,  इक पल ठहर, दूजे पल निकल जाना है। सागर के जैसा है ये दिल मेरा, ना होगा खाली, सिर्फ़ बढ़ते चले जाना है। झरने जैसा बहना चाहती हूं, तेरे रग-रग में। बन पंछी उड़ जाना चाहती हूं, तेरे ही संग में। सिमटना है तुझमें,जैसी कुदरत संग सिमटी है धरती। पाना है तुझको, जैसी नई रूह संग जुड़ी हो अभी ज़िदंगी। जीने के लिए कम नहीं हैं, ये सारे अंदाज़, मिलकर जिएंगे, इस नयी ज़िदंगी का एहसास।

【नाट्य विवरण】

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 नाटक:- "सीता परित्यागः" उ.प्र. संस्कृत संस्थानम् एवम् (आईकैड) इन्स्टीट्यूट ऑफ कल्चरल एण्ड एस्थेटिक डाइमेंशन्स के संयुक्त तत्वाधान में एक मासात्मक संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला की प्रस्तुति "सीता परित्यागः"  का सफल मंचन दिनांक 8 नवंबर, 2019 को "बी. एम. शाह प्रेक्षागृह, बीएनए परिसर" में हुआ। आलेख:- डॉ नवलता परिकल्पना एवं निर्देशन:- चित्रा मोहन कार्यशाला/संस्कृत प्रशिक्षण:- संध्या रस्तोगी। _______________________________________ नाटक:- "अंधेर नगरी"   भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की कालजयी नाटक अंधेर नगरी का सफल मंचन सांस्कृतिक विभाग के सहयोग से  30 सितम्बर, सोमवार को राय उमानाथ बली सभागार में किया गया। नाटक के निर्देशक के रूप में माननीय योगेंद्र कुमार जोशी व माननीय विपिन कुमार जी की सहभागिता रही।  _____________________________________  नाटक:- "बिस्तर में इतिहास"   का मंचन 01/01/2019 को रायउमानाथ बली प्रेक्षागृह में हुआ। इस नाटक का लेखन युवा रंगकर्मी 'नागपाल' एवं निर्देशन युवा रंगकर्मी