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【पूछ रहा है मेरा मन】

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   पूछ रहा है मेरा मन.....🖋️ यह कैसी सृष्टी रची जगदीश पूछ रहा है मेरा मन विषाद से भरे हैं हृदय, रोग ग्रसित है सबका तन। काम, क्रोध, लोभ, मोह कुंठाओं का अम्बार लगा दुःख कैसा है यह पीड़ा क्यूं है पूछ रहा है मेरा मन। चहुँ ओर अशांति है, दसों दिशाओं में असंतोष है हिंसा ही हिंसा का समाधान है पूछ रहा है मेरा मन। दीन हीन तिस्कारित यहां हर स्त्री पर अभिशाप है स्वतंत्रता क्यूं नहीं दी स्त्री को पूछ रहा है मेरा मन। अगणित प्रश्न मेरे मन में कौन इनका समाधान करे देखकर सृष्टी की ये दशा अधीर हो उठा है मेरा मन।