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माही सुन....

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बात हमारी सुन, वो माहिया मेरे दिल की धुन। क्या कह रहा है ये दिल,  ज़रा हौले-हौले सुन। बादल के जैसा है ये गुस्सा मेरा,  इक पल ठहर, दूजे पल निकल जाना है। सागर के जैसा है ये दिल मेरा, ना होगा खाली, सिर्फ़ बढ़ते चले जाना है। झरने जैसा बहना चाहती हूं, तेरे रग-रग में। बन पंछी उड़ जाना चाहती हूं, तेरे ही संग में। सिमटना है तुझमें,जैसी कुदरत संग सिमटी है धरती। पाना है तुझको, जैसी नई रूह संग जुड़ी हो अभी ज़िदंगी। जीने के लिए कम नहीं हैं, ये सारे अंदाज़, मिलकर जिएंगे, इस नयी ज़िदंगी का एहसास।