विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून पर विशेष।
प्रकृति और नारी।
'प्रकृति और नारी' बड़ी निराली है, तेरी ज़िदंगानी;
चंद लफ्ज़ो में बयां नहीं कर सकती, मैं तेरी कहानी।।
प्रकृति और नारी के गुणों को चंद शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता। दोनों ही स्वयं में अथाह सागर की भांति हैं। क्योंकि दोनों का ही श्रेत्र सीमा अति व्यापक है, जिस प्रकार प्रकृति सम्पूर्ण धरती को स्वयं में समेटे हुए, उसे सहेजती है ठीक उसी प्रकार से एक नारी भी अपने सम्पूर्ण परिवार को समर्पित उसका पालन-पोषण करती है।
यदि प्रकृति और नारी की तुलना की जाए तो दोनों ही समान हैं, जिस प्रकार नारी "चंचलता और गम्भीरता" दोनों ही गुणों को आत्मसात करते हुए समय-समय पर अनेक रूप धारण करती है, 'उसे अनेक रिश्तों की संज्ञा दी जाती है।' उसी प्रकार प्रकृति में भी "चंचलता और गम्भीरता" जैसे गुण पाए जाते हैं। जैसे- तेज़ चलती हुई हवा चंचलता का परिचायक है, और रूका हुआ शांत जल अपनी गम्भीरता का परिचय देता है। उपर्युक्त गुण इनके विशिष्ट गुणों में से एक है। किन्तु प्रकृति और नारी को सिर्फ़ इन्हीं गुणों तक सीमित नही रखा जा सकता है, क्योंकि ये दोनों विविध गुणों का समावेश हैं, इनमें विविध गुण, विविध कलाएं तथा इनके अनेक रूप हैं। यूं छोटे शब्दों में कहें तो नारी सभी गुणों से पूर्ण 'परिपूर्णता' की निशानी है।
नारी को परिपूर्णता की संज्ञा देना अतिशयोक्ति नही बल्कि सच्चाई है क्योंकि नारी ईश्वर की विशिष्ट रचना है और नारी ही त्याग, सेवा, सहानुभूति एवं ममता की मूरत है। और तो और; प्रकृति और नारी ही ईश्वर की सभी रचनाओं में से सर्वोपरि हैं। यदि इस धरती पर प्रकृति और नारी ना होती तो कैसा होता इस समाज का दृश्य? एकदम नीरस। अतः बिना प्रकृति और नारी के समाज की कल्पना भी नही की जा सकती है।
प्रकृति और ये मानव शरीर दोनों ही पांच तत्वों से मिलकर बने हैं-; पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
पृथ्वी और नारी-: इन पांचों तत्वों में से पृथ्वी अर्थात् धरती सबसे अहम है, बाकी सभी चार तत्व- 'जल, अग्नि, वायु और आकाश' पृथ्वी में निहित हैं; इसके अन्तर्गत ही आते हैं।
यदि जल को प्रत्यक्ष रूप में कहीं देखा जा सकता है तो, वो मात्र पृथ्वी पर ही सम्भव है।
यदि अग्नि को कहीं आभास किया जा सकता है तो, पृथ्वी पर ही।
वायु को ना देख सकते हैं और ना ही स्पर्श कर सकते हैं, सिर्फ़ महसूस किया जा सकता हैं, वो भी इस धरती पर रहते हुए।
और आकाश को छू तो नही सकते हैं लेकिन देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं तथा इसमें निहित विशेष ग्रहों जैसे:- सूर्य, चंद्रमा, तारे तथा इससे प्राप्त वर्षा, बादल, गरज, इन्द्रधनुषीय रंग को भी हम इस धरती पर रहते हुए ही इसका आनंद उठा सकते हैं और देख सकते हैं।
उपर्युक्त विवरण से हमें ज्ञात होता है कि; प्रकृति के निर्माण में ये 'पांच तत्व' और हमारे लिए 'प्रकृति' कितना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार इस समाज के लिए नारी का होना भी अति आवश्यक है। जिस प्रकार जीवन जीने हेतु धरती, ठीक उसी प्रकार से समाज की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए नारी का होना अनिवार्य है।
ये सभी पांचों तत्व सम्पूर्ण प्रकृति के निर्माण में पूरक ही नहीं अपितु ये हमारे जीवन जीने का प्रमुख स्रोत हैं।
किन्तु दुख की बात यह है कि, आज हम आधुनिक युग में पहुंच चुके हैं, और आधुनिकता इस कदर लोगों के सर पर चढ़ चुका है कि वे अपनी सुख-सुविधाओं के आगे प्रकृति और पर्यावरण को भी भूल चुके हैं। आज इस कदर "प्रकृति और नारी" का हनन हो रहा कि आने वाले समय मे ना प्रकृति बचेगी और ना ही नारी। आधुनिकता का तात्पर्य आधुनिक होने से है, नई चीजों को ग्रहण करने से है, समय के साथ चलने से है, ना कि प्रकृति को बदलने में है। प्रकृति स्वयं बदलता है, "क्योंकि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है।" किन्तु आज वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है, क्योंकि हम प्रकृति के अनुसार नहीं चल रहे हैं; बल्कि आज हम प्रकृति को अपने अनुसार बदलने की कोशिश कर रहे हैं। जोकि यह सम्भव नहीं हैंं, इस स्थिति में ना प्रकृति बचेगा और ना ही हम।
खैर ये तो प्रकृति की बात थी यदि बात करें नारी की तो उनकी भी दशा दयनीय है। एक तो वैसे भी हमारे हिन्दुस्तान में लड़कियों का अनुपात लड़को की अपेक्षा कम है, 1000 लड़को के पीछे लड़कियों की संख्या 800 मात्र है; या फिर इससे भी कम हो सकता है। इतनी कम संख्या होने के बावजूद भी महिलाओं से सम्बन्धित अपराधों में कमी नहीं बल्कि बढ़त आई है। प्रतिवर्ष 8391 महिलाओं को दहेज के कारण मौत के घाट उतार दिया जाता है, और 7200 से भी अधिक बलात्कार पीड़ितों की संख्या है।
यदि ऐसे ही सबकुछ चलता रहा तो आने वाले समय में ना समाज होगा, ना नारी होगी और ना प्रकृति।
इन सब समस्याओं के लिए सबसे पहले हम सरकार को दोष देते हैं, लेकिन खुद के अन्दर झांककर नही देखते। आखिर कब तक हम कानून और सरकार पर निर्भर रहेंगे? मन और मस्तिष्क की गन्दगी तो हमको और आपको ही साफ करना पड़ेगा।
जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे, लोगों को जागरूक नही करेंगे तब तक कुछ नही हो सकता; भले ही हजार कानून बना लिया जाय, हजार बंदिशें लगा दी जाए। इसीलिए "अपने और पराए की भावना को त्याग कर, हम एक हैं की भावना अपनाए"।
आधुनिक बनिए स्वयं को बदलिए; ना की अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कार को।
दो पौधे लगाइए; प्रकृति और पर्यावरण को बचाइए।
हर नारी के सम्मान में; अपने दिल में इक दीपक जलाइए।
इस धरती को; हरा-भरा और स्वर्ग बनाइए
क्योंकि....
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते। रमन्ते तत्र देवता।।
अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।।
wow dear superb.great thought about lady. GOD BLESS YOU
ReplyDeleteThank you so much 😊🙏
DeleteAmazing Creativity. Keep it up.
ReplyDeleteThank you,
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