【दोहा संग्रह】

 

।।दोहा।।

हे प्रथम पूज्य विघ्नेश, बाधा हरते आप।

आपके शुभागमन से, पूर्ण होते काज।।१।।

।।।

हरी दर्शन की लालसा, भोर संध्या रैन।

आओगे कब हे हरी, भीगत मोरे नैन।।२।।

।।।

कैसी यह लड़ाई मनु, कैसा है अभिमान।

चार दिन की है यात्रा, अंत में है श्मशान।।३।।

।।।

छड दे प्यारे पाप कर्म, जप ले उसका नाम।

चल उस डगर पे पगले, जो जाता प्रभु धाम।।४।।

।।।

विचरत हैं सभी बाहर, जैसे कोई सांड।

झांके न केहू अंदर, जहां सोई ब्रह्मांड।।५।।

।।।

प्रेम पथ पर बाधा अति, है जानत संसार।

जो किया सो उबर गया, बिनु पढ़े वेद सार।।६।।

।।।

अरे मूर्ख मानव दैत्य, आचरण ले सुधार।

पीटेगा तू एक दिन, जन करेगा प्रहार।।७।।

।।।

अंतर्मन के सागर में, खोजत जैसे 'नीर'।

'मैं' की भावना तज कर, समझे जैसे पीर।।८।।

।।।

लिखूं दोहा-चौपाई, अरू कुण्डलिया-छंद।

बस यही भाए हमको, इ कबहु ना हो बंद।।९।।

।।।

वस्त्र सुवर्ण से मन मोहे, जिसकी आयु है कम।

यदि सद्गुण से हिय छुए, तो चक्षु ना हो नम।।१०।।

।।।

संकट मोचन रामभक्त, बाला तेरो नाम।

हे हनुमंत दया करो, आपको नित प्रनाम।।११।।

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सघन अंधेरा छाया, आओ मेरे श्याम।

भीति लागै अति मोहे, पूरन ना हो काम।।१२।।

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त्र्यम्बकं त्रिपुरारी शिवा, आदि योगी महेश।

पूजूँ तुमको नित दिवस, दूर करो मम द्वेष।।१३।।

।।।

जाग भारत की बाला, अपने चक्षु को खोल।

नकल कर उस नारी का, है जिनका कुछ मोल।।१४।।

।।।

चहुं ओर शरीर चर्चा, न हो कोई प्रहार।

अल्पजीवी मात्र सोचैं, कैसे आत्म उद्धार।।१५।।

।।।

विपत्ति परै काम आवै, भोजन वसन मकान।

बाकी संचय व्यर्थ भयैं, न बचा पावै जान।।१६।।

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