【रूठ गई नींद आंखों से...】
अच्छी नींद आ रही थी आज आंखों में,
पर ना जाने क्यूँ लौट गई ख़ामोशी से।।
शायद रूठकर चली गई यूं दबे पैरों से
अच्छा! चलो चल के मनाया जाय।।
ना जाने क्यूँ नाराज़ हो गई है मेरे आंखों से
बहुत हुआ रूठना! अब उसे समझाया जाय।।
पहुंच गए नज़दीक उसके, मकान पर
अब धैर्य के साथ दरवाज़ा खटखटाया जाए।।
तनिक आहट सुनाई दी उसके आने की
आ गई! अब बातों का सिलसिला चलाया जाए।।
वो कुछ बोलती कि! हमने ही सब कह सुनाया
पर वो तो धैर्य की मूरत, चुपचाप सुनती रही।।
खत्म हुआ मेरे मन का संशय, तब उसने फरमाया
ये बड़ी बारीक-महीन बात है, क्या तुम्हें ज्ञात है।।
मैं नींद हूँ, मैं बसती हूँ बड़े चैन से उन आंखों में
जिस तन ने काम,क्रोध,लोभ को साधा हो
जिस मन में ना कोई बाधा हो
जिन आंखों में तृप्त हर अभिलाषा हो
द्रवित हो हृदय किन्तु जाग्रत आशा हो।।
Waooo superb.
ReplyDeleteThank you Sir🙏🙏
DeleteSuperb "Aankhe aur Nindiya"...
DeleteThank you 🙏
DeleteSuper Thought
ReplyDeleteThanks alot Buddy ❤
DeleteAwesome ❤️
ReplyDeleteThank you so much ❤
DeleteThank you ❤
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteIt's true fact👍👍
ReplyDeleteThank you
DeleteMast 👌👌👌❤️
ReplyDeletewhat a imagination.
ReplyDeletewell written.
Thank you.
Deletesuper
ReplyDeleteThank you ❤
DeleteOsm lines
ReplyDeleteThank you ❤❤❤❤
Delete