मोहब्बत का वो दौर लाओ....
यारो कोई तो मोहब्बत का वो दौर लाओ
वो ग़लिब की शायरी बेग़म का शोर लाओ।
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सदियों से मेरा महबूब मिलने नहीं आया
इल्तिजा है मेरी कोई उसे मेरी ओर लाओ।
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ग़ुमसुम है कहीं, कोई तो उसे याद दिलाओ
बांध सके हम दोनों को ऐसा कोई डोर लाओ।
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ऐ ख़ुदा! जल्द ख़त्म हो हम दोनों की मसाफ़त
हम फिर से मिले वहीं, रास्ते का वो छोर लाओ।
👌😍🤩🥰❤️
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