◆शायरी संग्रह◆

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एक ना एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा,
इक बार "फर्दा" फिर मुस्कुराएगा।
मैं रहूं या ना रहूं, ये जहान;
मुझे मेरी नज़्म में हर वक़्त पाएगा।
(फर्दा:-आने वाला कल, नज़्म:-कविता)

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अमावस की रात, फिर भी तारों की बारात है।
वो जुगनू सी धूमिल, फिर भी मेरी हयात है।
(हयात:- ज़िन्दगी)

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वो भी क्या "दहर" था,
जब हर जगह तेरा ही कहर था।
तेरे ही चर्चें हुआ करते थे हर गली में
जब तुझपर फ़िदा पूरा शहर था।
(दहर:- दौर, समय)

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मैं उकेरती शब्द बैठ कर तन्हाई में
तुम हो की पढ़ते ही नहीं रात की गहराई में।
......
मैं ढूंढती तुम्हें इतनी शिद्दतों से
तुम हो की मिले ही नहीं इतनी मुद्दतों से।

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कौन कहता हैं कि.... 
हम इश्क़ में बर्बाद हो गए। 
हम तो आशिक़ी मे बन" शायर" 
इस जहां में आबाद हो गए।

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मिलना तेरा कुछ ऐसा था
दिन में भी चांद निकलने जैसा था।। 
  ......
खुली आँखों में अनगिनत सपने थे
जो तेरी पलकों की छांव में रंगने थे।।

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कमाल की होती है ये इश्क़ भी...
कोई आंखों में देखकर सबकुछ जान जाता है।
कोई चेहरे को पढ़कर भी नज़रअंदाज़ कर जाता है।

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ऐ शख़्स! यहाँ कोई तेरे जैसा नहीं,
बदल जा तू भी यहाँ किसी का भरोसा नहीं।

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तेरे 'तक़्सीर' की तुझे ऐसी सज़ा मिलेगी।।
तू भटकेगा दर-ब-दर तुझे रिहा ना मिलेगी।
(तक़्सीर:- ग़लती, अपराध)

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यूँ तो तेरे जाने के बाद 
हम हुए और भी आबाद।
ना ही ग़मों साया
ना ही आंसुओं का सैलाब।
सिर्फ़-ओ-सिर्फ़ मेरी ज़िंदगी
अब मेरे हवाले-ओ-मेरे हाथ।
                                                 K.K.Leelanath✍

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