【कर्म ही पूजा है】
कर्म ही पूजा है.... कर्म करो फल की चिंता दो छोड़, मानव हो तो इस बंधन को दो तोड़। (प्रस्तुत कविता में एक तितली के माध्यम से मनुष्यों को निर्बाध कर्म करते रहने का संदेश दिया गया है।) दिन-प्रतिदिन फूलों से रस लाऊं अपना भोजन स्वयं पकाऊं। यहां कर्म-फल की विधा है सोई जिसका मर्म ना जाने हर कोई। पशु-पक्षी ना जाने यह सार फिर भी कर्म करे हजार। थकते हैं हम बेज़ुबान भी पर करते नहीं बयान कभी। भूख-प्यास हमें भी सताए पर इसका हाल कभी ना बताए। फिर भी मानव की क्या कथा सुनाए वो तो स्वयं के जीवन से ही पछताए। मानव ना जाने कहाँ व्यस्त है अपने जीवन से क्यों त्रस्त है। कर्म के महत्व को भलीभांति जानता है फिर भी ना जाने क्यूं कर्म से भागता है। हे प्रकृति! अब तुम ही बताओ भटके हुए मानव को राह दिखाओ। कैसे मानव की प्रेरणा स्रोत बनें उनके अंधियारे का ज्योत बनें। हमारे पास ना बोली और ना ही भाषा है हमारी तो बस मूक दर्शक की परिभाषा है। -©® K.K.Leelanath http://khushithought.blogspot.com