नाटक-: एक सवप्न प्लास्टिक मुक्त भारत का......




पात्र परिचय
1- रामाधीन मुंशी
2- मुंशी की पत्नी
3- वकील
4- वकील की पत्नी
5- चेतू (सब्ज़ी वाला)
6- एक अन्य ग्राहक


(प्रथम दृश्य / रामाधीन मुंशी जी के घर का दृश्य)

(रामाधीन मुंशी जी प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान की आराधना में व्यस्त अपने इष्ट का गुणगान करते हुए...)

हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे।
हरे रामा हरे रामा, रामा रामा हरे हरे।।

भजन समाप्त करते हुए प्रभु की चरनो में नतमस्तक होते हैं। पूजा-पाठ खत्म करने के बाद बाहर बरामदे में लगी कुर्सी पर आकर बैठ जाते हैं और वहां रखी अख़बार उठाकर पढ़ने लगते हैं। थोड़ी देर बाद उनके पड़ोसी मित्र जो पेशे से वकील हैं, टहलते हुए आते हैंं। 
मुंशी जी- आइए-आइए बैठिए, आज इधर कैसे आना हुआ?

वकील- (बैठते हुए बोलते हैं) हां! काफी दिनों से आप दिखाई नहीं दिए और इधर से टहलते हुए जा रहा था तो सोचा आप से भी मिलता चलूं।

मुंशी जी- हां आजकल जोड़ों का दर्द कुछ अधिक ही बढ़ गया है, सो नहीं जा पाता हूं सुबह टहलने...

वकील- हां आपकी बात भी सही है, अब क्या किया जाए जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे तमाम बिमारियां घेरनी शुरू हो जाती है और शरीर भी साथ छोड़ देता है। 
हां बस खानपान.... (तभी मुंशी जी बीच में ही उनकी बात काटते हुए बोलते हैं)

मुंशी जी- ख़ैर छोड़िए ये सब। आप अपना सुनाइए, क्या चल रहा है आपके यहां?

वकील- ईश्वर की कृपा से सब ठीक ही चल रहा है, बस वही छोटे वाले लड़के की रिश्ते की बात चल रही है...
मुंशीजी- (थोड़ा सोचकर सर हिलाते हुए बोलते हैं) अच्छा! रोहन की बात कर रहे हो। जिसकी पिछले महीने नौकरी लगी है।

वकील- हां। अब उसकी भी शादी-ब्याह करा दें, फिर ज़िम्मेदारी से थोड़ी मुक्ति मिले।

मुंशी जीआजकल है कहां? कौनसी जगह नौकरी कर रहा है?

वकील- आजकल लखनऊ में पोस्टिंग हैं। 
(तबतक अंदर से मुंशी जी की पत्नी आवाज़ देती हैं)
आइए आपका नाश्ता लगा दिया है।

वकील- चलिए आप भी नाश्ता करिए, हम भी निकलते हैं। 
(द्वतीय दृश्य का प्रारंभ वकील के घर से होता है)

(घर पहुंचते ही वकील की पत्नी, शिकायती लहजे में बोल पड़ती है।)
वकील की पत्नी- सुबह के वक़्त भी अपना फोन साथ लेके जाया करिए।

वकील- क्यूं क्या हुआ?

वकील की पत्नी:- (बड़बड़ाते हुए बोलती है) सुबह-सुबह ही आपके क्लाइंट घंटी बजाना शुरु कर देते हैं। 

वकील:- अब क्या किया जाए पेशेवर आदमी का जब यही पेशा यही पूजा दोनों ही है।

वकील की पत्नी:- तो बाहर वालों के साथ-साथ कभी घरवालों और रिश्तेदारों का भी मान रख लिया करो।

वकील:- भई साफ-साफ कहो, पहेली ना बुझाओ।

वकील की पत्नी:- कल आपके लाडली बहन का फोन आया था, पूछ रही थीं कब आ रहे हैं लड़की देखने?

वकील:- (हंसते हुए) अरे ये तो मैं भूल ही गया कि इसी बीच ये काम भी निपटाना है। हां सही कह रही हो इस बीच रोहन भी दशहरे की छुट्टी पर घर आ रहा है तो उससे भी इस बारे में बात कर लेते हैं, फिर उसी हिसाब से योजना बनाते हैं। 
(वकील ख़ुश होकर) चलिए अब तो नाश्ते के साथ-साथ मिठाई भी खिलाइए आपकी बहू जो आने वाली है।

वकील की पत्नी:- अभी रिश्ता तय भी नहीं हुआ, ख़ुशी में मार अभी से फूले जा रहे हैं।
       
(तृतीय दृश्य: सांयकाल का समय)

    सायं काल होते ही मुंशी जी खरीदारी करने के लिए बाज़ार की तरफ निकल पड़ते हैं। 
बाज़ार पहुंचते ही दुकानदार उन्हें दूर से ही देखकर राम-राम बोलता है, किन्तु मुंशी जी अपने समूह के साथ व्यस्त बातें कर रहे होते हैं, अतः मुंशी जी उसे हल्का सा देखकर राम-राम में जवाब देते हैं और फिर बतियाने में लग जाते हैं। अपनी चर्चा पूरी कर मुंशी जी दुकानदार की तरफ बढ़ते हैं।

दुकानदार;- आइए-आइए मुंशीजी। 

मुंंशी जी;- और क्या हाल है चेतू? 

दुकानदार;- 'बस आप लोगों की कृपा है'। 
बताइए सब्ज़ी में क्या लेंगे मुंशी जी।
तब तक एक और ग्राहक आ धमकता है और आते ही वह शिकायती लहजे में बोल पड़ता है, भाई चेतू कल तो तुमने एकदम आसी-बासी सब्ज़ी दी थी। आज तो मैं सारी सब्ज़ियां ख़ुद ही देख के लिए लेता हूं। 

दुकानदार;- देख लो भाई! आप ही की दुकान है। 
मुंशीजी भी;- उसके हाँ में हाँ मिलाते हुए कहते हैं, भई! ज़रूर देख के लो, पइसा काहे का लगा रहे हो? 

दुकानदार;- हामी भरते हुए, ले जाओ अब तो मुंशी जी की भी सहमती है।
 (दुकानदार फटाफट उसके थैले में सब्जियां रखकर उसको निपटाता है।)
मुंशी जी द्वारा निकालकर रखी हुई सब्जियों को तौलते हुए बोलता है, मुंशीजी अपना थैला दीजिए। 

मुंशी जी:- (आश्चर्य से) थैला कैसा थैला? 

दुकानदार:- सब्जियां रखने के लिए। आपको नहीं पता सरकार ने प्लास्टिक थैली बंद करा दी है।

मुंशी जी:- झल्लाहट के साथ, रोज़ ना जाने कौन सा नियम-कानून बनाते रहते हैं। देश में विकास, शिक्षा, शासन-प्रशासन नाम की कोई चीज़ ही नहीं, बस एक के बाद एक नए कानून लागू किए जा रहे हैं।

दुकानदार:- अब क्या किया जाए मुंशी जी, झेलना तो पड़ेगा ही। ख़ैर छोड़िए सब्ज़ी ले जाइए आप।

मुंशी जी- अब लेके कैसे जाएंगे? थैला वगैरह थोड़ी ना लाए हैं। 
रहने दो सब्ज़ी, कल जब थैला लेके आऊंगा तभी सब्ज़ी ले जाऊंगा। मुंशीजी गुस्से में वहां से चल देते हैं। 
दुकानदार:- इ प्लास्टिक और जी एस टी की वजह से  अपनी भी रोजी-रोटी फिकी पड़ गई है, नहीं तो पहिले खूब चौकस चला करती थी। ना खाना दिखता था ना पानी, बस दिन भर दुकानदारी में ही बीत जाया करता था।
  
(चतुर्थ/ अंतिम दृश्य)
मुंशी जी:-  अपने घर पहुंचते हैं, पानी की गुहार लगाते हैं।
(अंदर से मुंशी जी की पत्नी आती हैं, पानी देते हुए पूछती हैं, आज क्या हो गया, जो गुस्से से इतना लाल हुए जा रहे हैं। 
 
मुंशी जी:-  अब क्या बताऊं? ससुरा सरकार का भी दिमाग़ खराब हो गया है।

मुंशी की पत्नी:- अरे! हुआ क्या ये तो बताइए।

मुंशी जी:- बाज़ार में प्लास्टिक बंद हो गई, घर से थैला ले जाइए, फिर सब्ज़ी लाइए।

मुंशी की पत्नी:- अब इसमें कौनसा पहाड़ टूट पड़ा। सरकार जो कर रही है जनता के भले के लिए ही कर रही है ना।

मुंशी जी:- हां! अब तुम भी सरकार की ही वकालत करो।

मुंशी की पत्नी:- (गम्भीर होकर) कौनसी दुनिया में जी रहे हैं आप?
बाहर क्या हो रहा है जा रहा है कुछ अन्दाजा भी है आपको?
हेमंत चपरासी का बड़ा वाला लड़का था, जो दिल्ली में नौकरी कर रहा था।
नौकरी क्या कर रहा था, प्लास्टिक कारखाने में काम करता था, वहांं पर उसको कुछ इन्फेक्शन वगैरह हो गया जांच कराया तो पता चला कि कैंसर है....
डॉक्टर ने एक-दो महीने का मेहमान बताया था, महीने भर तो दूर वो चार दिन भी ठीक से नहीं जी पाया।

मुंशी जी:- (मुंशी जी क्या.... कहकर लड़खड़ाते हुए कुर्सी पर बैठ जाते हैं।)

मुंशी की पत्नी:- हां! परसो की ही तो बात है। उसका देहांत हो गया....
कुछ देर तक सन्नाटा छाया रहा, 

मुंशी जी:- लम्बी सांस लेकर बोलना शुरू करते हैं, 
इस बात से मैं दुखी अवश्य हूं किन्तु इस घटना ने मेरा हृदय परिवर्तित कर के रख दिया। 
(उनके चेहरे पर एक असीम शांति दिखाई पड़ रही थी, मानो उनको उनके सवालों के जवाब मिल गए और जो प्रतिद्वंद्व भीतर चल रहा था उसका भी निराकरण हो गया।) 
मैं खामखां गुस्सा कर रहा था। वाकई! यदि पति राजा होता तो पत्नी मंत्री के समान होती है जो आपको ग़लत निर्णय लेने से रोकती है और सही चीज़ का चुनाव करने में मदद करती है। 
आज ना मैं प्लास्टिक का उपयोग करूंगा और ना ही किसी को करने दूंगा। अपने समाज को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए मैं अथक प्रयास करूंगा।
   इस प्रकार घटना से रामाधीन मुंशी का हृदय परिवर्तित तो हुआ है साथ ही उन्होंने प्लास्टिक को अपने जीवन से निकाल फेंकने का भी संकल्प लिया।




Comments

  1. बहुत सुंदर सन्देश 👌👌

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  2. खुशी जी अपने कीमती समय
    में से कुछ समय निकालकर कभी हमारे ब्लॉग पर भी आइए और हमे भी पढ़िए ।
    🙏🙏

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