विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून पर विशेष।
प्रकृति और नारी। 'प्रकृति और नारी' बड़ी निराली है, तेरी ज़िदंगानी; चंद लफ्ज़ो में बयां नहीं कर सकती, मैं तेरी कहानी।। प्रकृति और नारी के गुणों को चंद शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता। दोनों ही स्वयं में अथाह सागर की भांति हैं। क्योंकि दोनों का ही श्रेत्र सीमा अति व्यापक है, जिस प्रकार प्रकृति सम्पूर्ण धरती को स्वयं में समेटे हुए, उसे सहेजती है ठीक उसी प्रकार से एक नारी भी अपने सम्पूर्ण परिवार को समर्पित उसका पालन-पोषण करती है। यदि प्रकृति और नारी की तुलना की जाए तो दोनों ही समान हैं, जिस प्रकार नारी "चंचलता और गम्भीरता" दोनों ही गुणों को आत्मसात करते हुए समय-समय पर अनेक रूप धारण करती है, 'उसे अनेक रिश्तों की संज्ञा दी जाती है।' उसी प्रकार प्रकृति में भी "चंचलता और गम्भीरता" जैसे गुण पाए जाते हैं। जैसे- तेज़ चलती हुई हवा चंचलता का परिचायक है, और रूका हुआ शांत जल अपनी गम्भीरता का परिचय देता है। उपर्युक्त गुण इनके विशिष्ट गुणों में से एक है। किन्तु प्रकृति और नारी को सिर्फ़ इन्हीं गुणों तक स