◆शायरी संग्रह◆
-------------------------------------------------- एक ना एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा, इक बार "फर्दा" फिर मुस्कुराएगा। मैं रहूं या ना रहूं, ये जहान; मुझे मेरी नज़्म में हर वक़्त पाएगा। (फर्दा:-आने वाला कल, नज़्म:-कविता) -------------------------------------------------------- अमावस की रात, फिर भी तारों की बारात है। वो जुगनू सी धूमिल, फिर भी मेरी हयात है। (हयात:- ज़िन्दगी) --------------------------------------------------- वो भी क्या "दहर" था, जब हर जगह तेरा ही कहर था। तेरे ही चर्चें हुआ करते थे हर गली में जब तुझपर फ़िदा पूरा शहर था। (दहर:- दौर, समय) --------------------------------------------------- मैं उकेरती शब्द बैठ कर तन्हाई में तुम हो की पढ़ते ही नहीं रात की गहराई में। ...... मैं ढूंढती तुम्हें इतनी शिद्दतों से तुम हो की मिले ही नहीं इतनी मुद्दतों से। ------------------------------------------------------- कौन कहता हैं कि.... हम इश्क़ में बर्बाद हो गए। हम तो आशिक़ी मे बन" शायर" इस जहां में आबाद हो गए